बक्सर का युद्ध : ईस्ट इंडिया कंपनी

बक्सर युद्ध (1764)



 22–23 अक्टूबर 1764 को बिहार के बक्सर नामक स्थान पर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं और भारतीय शासकों के एक गठबंधन के बीच निर्णायक युद्ध हुआ। इस गठबंधन में बंगाल के नवाब मीर क़ासिम, अवध के नवाब शुजा-उद-दौलाह तथा मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की सेनाएँ शामिल थीं। बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजों को निर्णायक विजय मिली, जिससे कंपनी को उत्तरी भारत में प्रमुख सत्ता स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस युद्ध ने ईस्ट इंडिया कंपनी को व्यावसायिक संस्था से शासक सत्ता बना दिया और भारत में उनके राजकीय अधिकार को दृढ़ किया।

बक्सर युद्ध की पृष्ठभूमि: 


1757 में प्लासी के युद्ध में रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में कंपनी ने बंगाल पर अधिकार कर लिया था और मीर जाफर को नवाब बनाया गया। बाद में मीर क़ासिम नवाब बना और उसने राजस्व-सुधार लागू कर अंग्रेज़ों के दस्तक-पत्रों से मिलने वाले व्यापारिक लाभ को समाप्त करने का प्रयास किया। मीर क़ासिम ने स्थानीय व्यापारियों से कर वसूलना शुरू किया, जिससे अंग्रेजों के निजी व्यापार को भारी क्षति पहुँची। परिणामस्वरूप दोनों पक्षों के बीच तनाव बढ़ गया और मीर क़ासिम ने 1763 में अवध के नवाब शुजा-उद-दौलाह और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के साथ मिलकर अंग्रेज़ों के विरुद्ध मोर्चा खोल लिया। इस प्रकार बंगाल में ब्रिटिश प्रभाव को चुनौती देने के कारण ही बक्सर युद्ध की शुरुआत हुई।

बक्सर युद्ध के कारण


कंपनी की मांग और नवाब की अवज्ञा: ईस्ट इंडिया कंपनी मीर क़ासिम को अधीन रखना चाहती थी, लेकिन मीर क़ासिम ने कंपनी की अपेक्षाएं पूरी नहीं कीं।

कर एवं व्यापार विवाद: मीर क़ासिम ने अंग्रेज़ों के दस्तक-पत्रों द्वारा व्यापार पर मिलने वाले विशेषाधिकार को समाप्त कर दिया और स्थानीय व्यापारियों से कर वसूलने लगा, जिससे कंपनी को भारी राजस्व हानि हुई।

संघठन: इन परिस्थितियों के बाद मीर क़ासिम ने शुजा-उद-दौलाह व शाह आलम द्वितीय के साथ मिलकर अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई की तैयारी की। इन सभी कारणों ने 1763-64 में पूर्ण संघर्ष को जन्म दिया।


बक्सर युद्ध में सम्मिलित पक्ष


 इस युद्ध में अंग्रेज़ ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं का नेतृत्व मेजर हेक्टर मुनरो कर रहे थे। इस सेना के विपरीत स‌मूहबद्ध रूप से शामिल भारतीय पक्ष निम्नलिखित थे:

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी: मुख्य सेनानायक मेजर हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में। लंदन स्थित कंपनी के तहत बंगाल व आसपास के क्षेत्रों में विस्तार का प्रयास कर रही थी।

बंगाल के नवाब मीर क़ासिम: जो मीर जाफ़र की गद्दी संभालने के बाद अंग्रेज़ों से असंतुष्ट हो गया और कंपनी के विशेषाधिकार को समाप्त करने लगा।

आवध के नवाब शुजा-उद-दौलाह: जिन्होंने मीर क़ासिम और शाह आलम द्वितीय के साथ मिलकर अंग्रेज़ों के विरुद्ध गठबंधन किया।

मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय: जिस पर शुजा-उद-दौलाह का प्रभाव था; उसने भी बंगाल में अंग्रेज़ों को समाप्त करने की आशा में इस गठबंधन में भाग लिया।


बक्सर युद्ध की प्रमुख घटनाएँ और तिथि


22 अक्टूबर 1764 को गंगा नदी के किनारे बक्सर के मैदान में निर्णायक युद्ध हुआ। ब्रिटिश सेनाएं सुबह से ही मोर्चा संभालकर अग्रिम पंक्ति तैयार कर रही थीं। दिन के मध्य तक अंग्रेज़ी सेना ने श्रेष्ठ रणनीति एवं सुव्यवस्थित समन्वय दिखाते हुए भारतीय गठबंधन को टककर दी। भारतीय सेनाओं में तालमेल की कमी के कारण मीर क़ासिम युद्ध के दौरान भागने के लिए मजबूर हो गए, जबकि शुजा-उद-दौलाह और शाह आलम द्वितीय ने हार स्वीकार कर ली। इस युद्ध में अंग्रेज़ों की संख्या कम होने पर भी उच्च दर्जे की सैन्य तकनीक और कोरवियों ने निर्णायक विजय दिलाई।

बक्सर युद्ध के परिणाम


इलाहाबाद संधि (1765): बक्सर युद्ध के बाद अगस्त 1765 में इलाहाबाद में रोबर्ट क्लाइव ने नवाब शुजा-उद-दौलाह और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के साथ संधियाँ कीं। शुजा को इलाहाबाद एवं कारा का नियंत्रण छोड़ना पड़ा और उसे कंपनी को 50 लाख रुपये युद्ध जप्तिदरु चुकाने पर सहमत होना पड़ा।

दीवानी अधिकार: शाह आलम द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी (राजस्व-संग्रह) अधिकार प्रदान किया। इसके बदले में कंपनी को वार्षिक 26 लाख रुपये प्रजातन्त्र निधि के रूप में प्राप्त होंगे। इस प्रकार अंग्रेज़ों को इन प्रांतों का राजस्व एकत्र करने का अधिकार मिल गया। इन परिणामों से कंपनी आर्थिक और प्रशासनिक दोनों रूप से बंगाल-बिहार-ओडिशा में नियंत्रण स्थापित करने में सफल हुई।


बक्सर युद्ध के ऐतिहासिक महत्व


ब्रिटिश सत्ता की स्थापना: बक्सर युद्ध ने कंपनी को व्यापारिक संगठन से उत्तर भारत में केंद्रीय शासक शक्ति बना दिया। इस युद्ध ने सिद्ध कर दिया कि अंग्रेज़ी सेना तीनों भारतीय सेनाओं की संयुक्त शक्ति से श्रेष्ठ थी। युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने पाश्चात्य शक्तियों की भाँति शासन-संस्था के रूप में काम करना शुरू किया।

भारतीय एकता की विफलता: मीर क़ासिम, शुजा-उद-दौलाह और शाह आलम द्वितीय के बीच एकजुटता की कमी स्पष्ट रूप से दिखी। व्यक्तिगत स्वार्थ एवं असामंजस्य के कारण गठबंधन फैल गया, जिससे अंग्रेज़ों ने आसानी से जीत हासिल की।

मुग़ल साम्राज्य का पतन: मुगल सम्राट को ईस्ट इंडिया कंपनी की सुरक्षा पर निर्भर होना पड़ा और उसकी राजनैतिक स्वायत्तता समाप्त हो गई। इस युद्ध ने ब्रिटिश प्रभुत्व की नींव रखी, जिसने आगे चलकर पूरे भारत में कंपनी के विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया।



बक्सर युद्ध के निष्कर्ष


बक्सर युद्ध भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में निर्णायक मोड़ था। इस युद्ध में अंग्रेज़ों की विजय ने स्पष्ट कर दिया कि भारत में अब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ही प्रमुख सत्ता है। परिणामस्वरूप इलाहाबाद संधि द्वारा अंग्रेज़ों को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा का राजस्व नियंत्रण मिल गया। भारतीय शासकों की यह पराजय उनकी असंगठित राजनीति को उजागर करती है और अंग्रेज़ी शासन की स्थापना के लिए सहायक साबित हुई। बक्सर युद्ध से प्राप्त अनुभवों ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के रूप में शासन की नींव पुख्ता की और उपमहाद्वीप के भविष्य का मार्ग निर्धारित किया।





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